रजवार भित्ति अलंकरण के लोकप्रिय शिल्पकार: पण्डितराम रजवार/ The changing face of Rajwar clay art : Pandit Ram Rajwar

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Published on: 15 October 2019

मुश्ताक खान

चित्रकला एवं रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर।
भारत भवन, भोपाल एवं क्राफ्ट्स म्यूजियम, नई दिल्ली में कार्यानुभव।
हस्तशिल्प, आदिवासी एवं लोक कला पर शोध एवं लेखन।

छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल में रहने वाले रजवार समुदाय द्वारा की जाने वाली भित्ति अलंकरण कला को आज जो लोकप्रियता हासिल हुई है उसमे पण्डितराम रजवार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। विलक्षण प्रतिभा के धनी और एक सफल  कलाकार पण्डितराम रजवार सरगुजा, छत्तीसगढ़ के रजवार भित्ति अलंकरण एवं भित्ति चित्रण के एक विख्यात कलाकार हैं। इस कला के विकास में उनका सबसे बड़ा योगदान यही है कि उन्होंने इसे शहरी पक्के मकानों की सीमेंट कंक्रीट से बनी दीवारों पर पूर्ण स्थायित्व के साथ बनाने की पद्यति विकसित की।

Pukka house

रायपुर स्थित पुरखौती प्रांगण में रजवार कुटीर का निर्माण करते पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पी 

 

Applying moist clay over cemented-pukka surface

ईंट एवं सीमेंट कांक्रीट से बनी दीवारों पर मिट्टी के गारे से काम करते पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पी 

 

उन्होंने इस कला के ग्रामीण परिवेश एवं शहरी परिवेश में करने के अंतर को पहचाना है। कच्ची दीवारों और ईंट-प्लास्टर से बनी पक्की दीवारों पर मिट्टी का काम करना एकदम भिन्न है। ईंट-प्लास्टर से बनी पक्की दीवारों पर यह काम किस प्रकार किया जाये एवं उसे कैसे स्थायी किया जाय, इस विषय पर उन्होंने बहुत काम किया है और काम के माध्यम में बहुत परिवर्तन किये हैं। अब वे मिट्टी, गोबर, मिटटी के रंगों, बांस एवं लकड़ी की तीलियों के साथ लोहे का पतला तार, फेविकोल, कीलें, लोहे के तार की जालियों और एक्रेलिक रंगों का प्रयोग भी करने लगे हैं।

लगभग ६३ वर्षीय पण्डितराम क जन्म ग्राम सोनपुर खुर्द में हुआ जहां आज वे रहते हैं। उनके पिता और माता धनसाय तथा फुलेसरी बाई दौनों ही मिट्टी के काम में कुशल थे। मां गोबर-मिट्टी से लिपी दीवारों पर छूही मिट्टी से की जाने वाली पारम्परिक रजवार लिपाई जिसे पाखा लिखी कहते हैं, में दक्ष थीं।  

वे रजवार समुदाय के ऐसे पहले शिल्पी हैं जिन्होंने इस क्षेत्र की आदिवासी-लोक कला को एक ठेकेदारी व्यवसाय के रूप में अपनाया है। वे अच्छे लोक गायक, वादक और कच्ची मिट्टी के काम के कुशल शिल्पी हैं। उन्होंने सरगुजा क्षेत्र की सभी कलाओं जैसे मिट्टी का काम, चित्रकारी, बांस का काम, काष्ठ नक़्क़शी, पत्थर का काम, टेराकोटा, गृह निर्माण आदि के शिल्पियों का एक सामूहिक संगठन तैयार किया है। इस संगठन के पचासों कलाकार उनके निर्देशन में सामूहिक रूप से कार्य करते हैं। उनका समूह ठेके पर कलाकार्य करता है। 

 

 

 

artists working on wood with Pandit Ram

बांस तथा लकड़ी का काम करते पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पी  

 

Artists carving out designs on the house door

लकड़ी से दरवाज़े पे नकाशी करते हुए पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पी 

 

Artists working on jali with Pandit Ram

पण्डितराम रजवार के साथ जाली पर काम करते हुए शिल्पी 

 

Pandit Ram working on lepai

लिपाई का काम करते हुए पण्डितराम रजवार

 

पिछले कुछ वर्षों में देश के विभिन्न भागों में स्थित संग्रहालयों में पारम्परिक ग्राम परिसर बनवाने का काम काफी बढ़ गया है। छत्तीसगढ़ एवं देश के अन्य हिस्सों में इस प्रकार के अनेक ग्राम परिसर बने हैं। इन परिसरों में विभिन्न आदिवासी समुदायों द्वारा बनाई जाने वाली पारम्परिक झोपड़ियां अथवा आवासों का संकुल तैयार कराया जाता है। प्रत्येक झोंपड़ी में उसे बनाने वाले समुदाय द्वारा बनाई जाने वाली शिल्प विधाएँ दर्शाई जाती हैं, जैसे भित्ति अलंकरण, भित्ति चित्र, बांस का सामान, लकड़ी पर नक्काशी और उससे बनी कलाकृतियाँ, टेराकोटा, धातु शिल्प तथा लोहे से बना सामान आदि। यह सारा काम जटिल होता है जिसमें अनेक विधाओं के शिल्पियों की आवश्यकता होती है। सामान्यतः संग्रहालयों के पास इस प्रकार की जानकारियों का आभाव रहता है, इस कारण वे ऐसे व्यक्ति अथवा संस्था की तलाश में रहते हैं जो उनके लिए इस प्रकार का कार्य सम्पादित कर सके। पंडित राम रजवार ने इस आवश्यकता को पहचाना। सन २०१०-११ के आस-पास जब वे रायपुर स्थित महंत घासीदास संग्रहालय एवं पुरखौती प्रांगण के लिए काम कर रहे थे, तब उन्होंने देखा कि बस्तर के कुछ कलाकार हैं जो वहां की विभिन्न कलाओं के शिल्पियों को साथ लेकर ठेके पर काम करते हैं। परन्तु सरगुजा अंचल में कोई भी ऐसा व्यक्ति अथवा संस्था नहीं है जो वहां की विभिन्न कलाओं के शिल्पियों को एक साथ लाकर उनसे काम करा सके। उन्हें लगा कि यह कार्य वे भलीभांति कर सकते हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र के विभिन्न कलाओं के कारीगरों से संपर्क कर उन्हें अपने विश्वास में लिया और एक जुट होकर काम करने लिए प्रेरित किया। अब तक वे छत्तीसगढ़ एवं देश के अनेक संग्रहालयों में सरगुजा के रजवार एवं अन्य समुदायों की झोंपड़ियां एवं भित्ति अलंकरण आदि बनवा चुके हैं। इनमें जनजातिय संग्रहालय, भोपाल; पुरखौती प्रांगण, रायपुर; मानव संग्रहालय, भोपाल तथा कुरुक्षेत्र संग्रहालय, हरियाणा आदि प्रमुख हैं। इस प्रकार उन्होंने सरगुजा क्षेत्र के परम्परागत शिल्पियों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा किये।

Mixture of clay and hay

भित्ति अलंकरण बनाने हेतु प्रयुक्त होने वाली सामग्री पुवाल एवं मिट्टी 

 

Pandit Ram working on clay models

मिटटी और सुखी घास के मिश्रण से पुतला बनाते पण्डितराम रजवार

 

clay model made out of clay and hay

मिटटी और सुखी घास के मिश्रण से बना पुतला 

 

Clay relief work inside home

भित्ति अलंकरण 

 

Painted clay relief work

भित्ति चित्र पर रंग करते पंडित राम 

 

Other clay designs worked out inside the house

पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पियों द्वारा बनाया भित्ति अलंकरण 

 

painted clay work inside the work

पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पियों द्वारा बनाया भित्ति अलंकरण 

 

Pandit Ram working on a designer separator inside the house

जाली पर काम करते हुए पंडित राम 

 

Clay relief work outside the house

पण्डितराम रजवार एवं उनके साथी शिल्पियों द्वारा बनाया भित्ति अलंकरण 

 

house with Rajwar Clay relief work

रायपुर स्थित पुरखौती प्रांगण में बनाई गई रजवार कुटीर 

 

सरगुजा क्षेत्र का काष्ठशिल्प जो लगभग मृतप्रायः हो चुका हो चुका था, उसे पुनर्जीवन केवल पंडित राम रजवार के प्रयासों से मिल सका है। यद्यपि इस काम में उन्होंने बस्तर के काष्ठशिल्पियाँ की सहायता ली और कुछ उनकी नक़ल भी की, फिर भी उनके प्रयासों से वर्तमान में ओरांव जनजाति के लगभग २० काष्ठशिल्पी उपब्ध हैं।

बेशक पण्डितराम रजवार के काम में सोनाबाई रजवार और सुंदरीबाई रजवार जैसी सहजता और गहराई न हो परन्तु उन्होंने रजवार भित्ति अलंकरण कला को लोकप्रिय बनाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

 

This content has been created as part of a project commissioned by the Directorate of Culture and Archaeology, Government of Chhattisgarh, to document the cultural and natural heritage of the state of Chhattisgarh.